सामाजिक समस्या

सामाजिक समस्या

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है और दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाली देश है।यहाँ के लोगों की संस्कृति अत्यंत विविधता पूर्ण और समृद्ध है। किन्तु यहाँ प्रचलित सामाजिक बुराइयाँ भारतीय समाज के लिए

अभिशाप बन कर रही है जो की स्वतन्त्ता  के सत्तर साल से भी अधिक वर्ष बीत जाने के बाद भी ख़त्म या निर्मूल नहीं हो पायी हैं।एक ऐसे समाज में ,जहाँ भारतीय स्त्रियां अन्तर्राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिताएँ में जीत हासिल कर रही हैं ,खेल प्रतियोगिताएं में देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और यहाँ  तक की देश की रक्षा में भी अपनी सक्रीय भूमिका निभा रही है ,वही हज़ारों महिलाएं दहेज़ के नाम पर जलाकर मार डाली जा रही हैं और  बाल शिशु के रूप में उनकी हत्या की जा रही हैं।  हमारे समाज में प्रचलित अधिकाँश बुराइयाँ महिलाओं को ही अपना शिकार बनाती हैं।

दहेज़ प्रथा –

दहेज़ की माँग करना हमारे देश के क़ानून के विरुद्ध हैं ,किन्तु इसके बावजूद अनेक भारतीय युवक अपने माता पिता को विवाह में भारी भरकम दहेज़ माँगने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अनेक शिक्षित युवक भी ऐसे हैं जो अच्छी तरह से जानते हैं कि यह एक सामाजिक बुराई हैं किन्तु उनमें इतना साहस नहीं होता है कि वे दहेज़ के खिलाफ विरोध की आवाज उठा सकें।  बड़ा  दहेज़ ना लाने वाली बहनों का इनके ससुराल पक्ष द्वारा उत्पीड़न केवल गाँव में ही नहीं बल्कि शहरों में भी आम बात हो गयी हैं।

महिलाओं की अशिक्षा –

आज इक्कीसवीं सदी में महिलाओं ने समाज के लगभग हर क्षेत्र में सफलता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई है।किन्तु वावजूद अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ वह अवंछिय समझी जाती है और परिवार में भी उसे बराबरी का दर्ज़ा नहीं दिया जाता है।शिशु मृत्यु में भले ही गिरावट आ रही हो किन्तु आज भी हमारे देश में हज़ारों ऐसे लड़कियां हैं ,जिन्हे स्कूल नहीं भेजा जाता है ,उनसे हर तरह के घरेलु काम करवाए जाते हैं और काम कम उम्र  में ही उनके विवाह कर दिए जाते हैं। उन्हें सम्मान के साथ जीने का उचित अवसर नहीं दिया जाता है।  उन्हें एक लोकतांत्रिक देश में एक नागरिक के लिए आवश्यक बुनियादी शिक्षा से भी वंचित रखा जा रहा है।  अशिक्षित होने के कारण वे पुरुष आधिपत्य के समक्ष गुलामों जैसी हालात  में जीने के लिए अभिशप्त  हैं।

दलित महिलाओं की स्थिति –

अशिक्षित होना तो वैसे ही बुरी बात हैं किन्तु जब स्त्री अक्षित हो और वह दलित जाति की हो तो उसकी और भी दुर्दशा  होती  हैं। हालाकिं आज़ादी के बाद   हमारे संविधान द्वारा तथा THE UNTOUCHABILITY (OFFENCES) ACT, 1955 द्वारा अस्पृश्यता को गैर कानूनी बना दिया गया है किन्तु आज भी देश के कई भागों में यह सामाजिक बुराई जारी हैं। गाँव में अनेकों दलित महिलाओं केवल एक  घड़ा पीने का पानी लाने के लिए भी मीलों दूर जा पड़ता है क्योंकि अछूत माने जाने के कारण वे गाँव के कुवें से पानी नहीं ले सकती हैं। जब महिलाएँ  शिक्षित होंगी तभी वे जागरूक हो सकेंगी और अपने अधिकारों के लड़ सकेंगी।बिना हर किसी को सामाजिक न्याय उपलब्ध कराये हम अपने आपको प्रगतिशील नहीं कह सकते और न केवल दुनियां की निगाह में बल्कि स्वयं अपनी निगाह में पिछड़े ही बने रहेंगे। हमारे देश की जो शिक्षित और जागरूक महिलाएँ हैं उन्हें आगे बढ़कर सामने आना चाहिए और अपनी वंचित और दमित बहनों के बेहतर भविष्य के लिए ठोस पहल करनी चाहिए।
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