दहेज प्रथा

दहेज प्रथा

दहेज भारतीय समाज  के लिए अभिशाप है .यह कुप्रथा घुन की तरह समाज को खोखला करती चली जा रही है .इसने नारी जीवन और समाजिक व्यवस्था को तहस -नहस करके रख दिया है .
दहेज के बुराई – दुर्भाग्य से आजकल दहेज की ज़बरदस्ती माँग की जाती है .दूल्हों के भाव लगते हैं .बुराई की हद यहाँ तक बढ़ गयी है कि जो जितना शिक्षित है ,समझदार है ,उसका भाव उतना ही तेज़ है . ऐसे में कन्या का
पिता कहाँ मरे ? वह दहेज की मंडी में से योग्यतम वर खरीदने के लिए धन कहाँ से लाये ? बस यहीं से बुराई शुरू हो जाती है .

दुष्परिणाम

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम  विभिन्न हैं .या तो कन्या के पिता को लाखों का दहेज देने के लिए घूस ,रिश्वतखोरी,भष्ट्राचार ,काला -बाज़ार आदि का सहारा लेना पड़ता है या उसकी कन्याएँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ दी जाती हैं .हम रोज़ समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि अमुक शहर में कोई युवती रेल के नीचे कट मरी ,किसी बहु को ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला ,किसी ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली . ये सब घिनौने परिणाम दहेज रूपी दैत्य के ही हैं .

रोकने के उपाय

हालांकि दहेज को रोकने के लिए समाज में संस्थाएं बनी है ,युवकों ने प्रतिज्ञा पत्रों पर हस्ताक्षर भी किये है ,कानून भी बने हैं ,परन्तु समस्या ज्यों की त्यों हैं .सरकार ने दहेज निषेध अधिनियम (दहेज प्रतिबंध अधिनियम, १९६१) के अंतर्गत दहेज के दोषी को कडा दंड देने का विधान रखा है .परन्तु वास्तव में आवश्यता है -जन जागरण की .जब तक युवक दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी ,तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा .
दहेज अपनी शक्ति के अनुसार दिया जाना चाहिए ,धाक ज़माने के लिए नहीं .दहेज दिया जाना ठीक है ,माँगा जाना ठीक नहीं है .हहेज़ को बुराई वहां कहा जाता है ,जहाँ माँग होती हैं . दहेज प्रेम का उपहार है ,ज़बरदस्ती खींच ली जाने वाली संपत्ति नहीं .