मेरे सपनों का भारत
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
हम बुलबुलें हैं उसकी वो गुलसिताँ हमारा।
हमारा भारत ऋषि – मुनियों तथा साधू -संतों की पवित्र भूमि हैं . दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र “भरत” पर इसका नामकरण हुआ .
भारत कब्भी सोने की चिड़ियाँ कहलाता था ,पर आक्रमणकारियों ने इसे लूटने में कोई कसर न छोड़ी .१५ अगस्त ,१९४७ में हमने अपने महान सपूतों की कुर्बानी से आजादी पा ली .
यहीं श्रीकृष्ण ने “गीता “का उपदेश दिया था ,यही रामचरितमानस की रचना हुई थी . बुद्ध ,महावीर ,गुरुनानक ,दयानंद ,गांधी -जैसे कितने ही महापुरषों ने यहाँ जन्म लेकर मानवता ,सत्य ,अहिंसा ,परोपकार ,निष्काम कर्म का मार्ग प्रशस्त किया था . मेरे सपनों के भारत का प्रत्येक व्यक्ति ऐसा ही होगा .
विज्ञान के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हो रही है और हम अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को फिर से प्राप्त कर लेंगे .कृषि में हरित क्रांति और दुग्ध के लिए स्वेत क्रांति आई . यह सब होते हुए भी मेरे सपनों का भारत नहीं है .
आज लोग स्वार्थी हो गए हैं . चारों ओर बेईमानी ,शीघ्रता से अमीर होने की ललक ,दूसरे को नीचा दिखाने का अथक प्रयास ,भौतिकवाद की ओर बढ़ते कदम -हमें कहीं पतन की ओर धकेल रहे हैं .स्वार्थ के कारण दिन -प्रतिदिन एक दूसरे से विश्वास उठता -सा रहा है . वे नेता नहीं रहे जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण तक गँवा दिए थे .
मैंने कल्पना की थी ऐसे भारत की ,जहाँ बुद्धि और भावना का संगम होगा . जहाँ लोग परस्पर स्नेह ,भाई -चारे के बल पर आगे बढ़ेंगे .अब समय आ गया है पुनः उठने का ! त्याग के साथ भोग करने का ! समय बदलेगा और मेरे सपनों का भारत साकार रूप में मेरे सामने होगा .