परमाणु निरस्त्रीकरण
जब भी परमाणु हथियारों का जिक्र होता है ,तो हमें द्वित्य विश्व युद्द के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी में हुई भयंकर विभीषिका याद आ ही जाती है। यद्यपि उस दुःखद दुर्घटना को बीते आधी सदी से ज़्यादा का समय गुजर चूका है किन्तु लगता है मनुष्य ने उस घटना से कोई सीख नहीं ली और वह आज भी अशिक्षित और अज्ञानी बना
हुआ है। दुनिया के तमाम देशों में हथियारों का भंडार जुटा लेने की होड़ मची हुई है और यहाँ तक विश्व के कई प्रभावशाली और शांतिप्रिय माने जाने वाले देशों के पास परमाणु बम मौजूद हैं।महा शक्तिशाली (सुपर पावर ) द्वारा प्रारम्भ किये परमाणु निरस्त्रीकरण कार्यक्रम को सफलता नहीं मिल पायी है क्योंकि हमारी दुनिया मतभेदों ,शत्रुता और संघर्ष की भावना से मुक्त नहीं हो पा रही है।
शांतिपूर्ण सह – आस्तित्व –
पड़ोसी देश एक दूसरे से भयाक्रांत रहते हैं।शांतिपूर्ण सह – आस्तित्व के स्थान पर संशय और शत्रुता का वातावरण व्याप्त है। इसीलिए परमाणु बम रखना या न रखना एक गंभीर बहस का मुद्दा बन गया है। एक तरफ तो यह आत्म रक्षा के लिए आवश्यक है किन्तु दूसरी ओर यह भी सच है कि इसका होना निरस्त्रीकरण की नीति के विरुद्ध है।
मानवता की रक्षा –
कुछ वर्षों पहले परमाणु हथियारों का बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता था और उस पर आज नियंत्रण लगा पाना कठिन है।दुनिया के शक्तिशाली देशों ने पर्याप्त मात्रा में ऐसे हथियार जुटा लिए हैं और वे इस प्रकार के हथियारों के और उत्पादन को रोक सकते हैं किन्तु दूसरी ओर जो छोटे देश हैं ,वे इन हथियारों का बनाना और रखना चाहते हैं क्योंकि इनके बिना वे अपने को असुरक्षित मससूस करते हैं। इस प्रकार से यह भानुमति का ऐसा पिटारा या बोतल से बाहर निकला ऐसा बुरा जिन्न है जिसे बंद नहीं किया जा सकता और उसके बुरे तत्व सभी ओर फ़ैल चुके हैं। यह दुःखद तथ्य है कि मानवता सौहार्द के वातावरण में नहीं जी सकती है और धरती के संसाधन जो लोगों के जीवन स्तर की गुणवत्ता को बढ़ाने में काम में उपयोग में लाये जाने चाहिए थे वे विनाश और मृत्यु के लिए प्रयोग किये जा रहे हैं।
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