सांप्रदायिकता एक अभिशाप
हमारा भारत देश एक बहुत बड़ा देश है . इसमें अपने भाषाओँ ,अनेक जातियों और अनेक धर्मों के लोग रहते हैं . उनके खान पान ,वेशभूषा और रीति रिवाज भिन्न भिन्न है . यह एक मात्र ऐसा देश है जहाँ सबसे अधिक भाषाएँ बोली जाति है .यहाँ हिन्दू बहुसंख्या में हैं तथापि मुसलमान ,सिख ,ईसाई ,पारसी आदि सभी यहाँ के नागरिक हैं और उन्हें सामान अधिकार प्राप्त है . सभी धर्मावलम्बियों यहाँ अपने तौर – तरीके ,रीति रिवाज और परम्पराओं का पालन करते हुए पाए जाते हैं . मूलभूत एकता है और वह यह है कि वे हिन्दू ,मुसलमान सिख ,ईसाई बाद में हैं पहले भारतीय है .नेहरु जी के शब्दों में यह विचारणीय है कि कुछ धर्म तो भारतीय उत्पत्ति के भी नहीं थे फिर भी उस धर्म के लोगों के भारत के आकर बसने पर कुछ पीढ़ियों के बाड़े वे निश्चित रूप इसकी मूलधारा में जुड़कर एकाकार हो गए . इसका कारण था उसमें परस्पर प्रेम और भाईचारा .उनको ऐसे देश में जाने पर भी जहाँ उन्ही का धर्म माना जाता हो बहर्तीय ही समझा जाता है . यही तत्व हमारे देश की उन्नति का आधार रहा है ,लेकिन आज स्वार्थ में लिप्त अनेक विघटनकारी शक्तियों एक दूसरे के प्रति कटुता और विद्वेष उत्पन्न करती है जिससे तनाव और अलगाव की भावना विकराल रूप ले लेती हैं . ऐसी विकट स्थिति में साम्प्रदायिक सद्भाव की नितांत आवश्यकता है .
साम्प्रदायिकता का अर्थ –
एक सम्प्रदाय का अपने को उच्च और श्रेत्श समझना तथा दूसरे सम्पद्र्दाय के प्रति घृणा ,विध्व्श और हिंसा का भाव रखना ही साम्प्रदायिकता है . यह एक ऐसी बुराई है ,जो मानव – मानव के बीच में अलगाव पैदा कर देती है और समाज को टुकड़े टुकड़े कर देती है . यहराष्ट्रीय एकता और अखंडता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है . इससे सारे देश का वातावरण विषाक्त हो जाता है . साम्प्रदायिकता एक ऐसा पागलपन है जो लोगों को मानसिक और अध्याम्तामिक रूप से अँधा कर देता है .
साम्प्रदायिक संघर्ष के कारण –
भारत में सांप्रदायिकता की समस्या प्रारंभ से ही धार्मिक की अपेक्षा मुख्यतः राजनितिक रही है . सासंकृतिक संरुपों की विविधता कभी भी सांप्रदायिक संघर्ष का कारण नहीं रहा है . यह संघर्ष केवल सत्ता ,संपत्ति और समाज के ठेकदारों की दिमागी दुरभि संधि मात्र है . इसमें एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय से अपने को उच्च ,शक्तिशाली और श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास करता है ,स्वतन्त्रा प्राप्ति के बाद हमारे वोट की राजनीति ने इस बुराई को बढ़ाया। इसने अल्पसंख्यक सम्प्रदाय के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनायी।
साम्प्रदायिकता के परिणाम –
सांप्रदिकता का उन्माद देश के कभी इस कोने में तो कभी उस कोने में ऐसी कटुता उत्पन्न कर देता है कि आये दिन हिन्दू मुस्लिम दंगे होते रहते हैं। इसके द्वारा तोड़ फोड़ आगजनी और नर संहार का ऐसा तांडव होता है कि मानवता शर्म से गर्दन झुका लेती है। धार्मिक उन्माद में वे इंसान से जानवर बन जाते हैं और देखने ही देखते खूँखार भेड़िये की तरह भोले भाले बच्चों को अनाथ कर देते हैं। इससे आर्थिक व्यवश्था डगमगा जाती है ,स्थिति के सामान्य होने में बहुत समय लगता है और इस वैमनस्य के शिकार हुए परिवार इसे जीवन पर्यन्त भुला नहीं पाते ,फिर वह प्रेम और स्नेह कैसे आ सकता है ?
साम्प्रदायिक सद्भाव से तात्पर्य –
सभी धर्मावलम्बियों के बीच परस्पर स्नेह और भाई चारा ही साम्प्रदयिकता सद्भाव है। इसके लिए आवश्यक है कि सब लोग आपसी मतभेदों को भुलाकर एक दूसरे के सुख दुःख में काम आएं। वह जिस धरती का अन्न खाये ,जल पिए और जिसकी हवा में साँस लें और उसी की आन – बान के लिए मर मिटे। इस देश को अपना समझे और इसमें आस्था रखें। वे यहाँ की पवित्र वसुंधरा पर रखकर विदेशों के अपवित्र सपने न देखें। सम्प्रदयिकता सद्भाव हमें यह सिखाता है कि हमें हिन्दू ,मुसलमान ,सिख या ईसाई होने के साथ – साथ एक अच्छा इंसान बनना चाहिए।
साम्प्रदायिकता रोकने के उपाय –
हमारे देश के अनेक समाज सुधारकों, साहित्यकारों और दार्शनिकों ने सांप्रदायिक समस्या पर गहरी चिंता व्यक्त की और इसका निवारण करने तथा लोगों में सद्भाव पैदा करने का प्रयास किया। उन्होंने समय और आवश्यकता के अनुसार धारणाओं में परिवर्तन करने का वह सन्देश दिया जिससे हम अपने समस्त विवाद और आपसी कलह को त्याग कर स्नेह और प्रेम की धारा प्रवाहित करने में जुट जाए क्योंकि प्रेम से प्रेम ,विश्वास से विश्वास ,घृणा से घृणा उत्पन्न होती है। फिर भारत भूमि तो हम सबकी मातृ भूमि है। हमें यह याद रखना होगा कि सभी धर्म आत्मा की शान्ति के लिए उस परमपिता परमेश्वर की आराधना पर बल देते हैं। वह तो एक है। कोई उसे भगवान् कहता है ,कोई खुदा या गाड। उस तक पहुंचेने के साधन चाहे भिन्न हो ,लेकिन लक्ष्य तो एक है।फिर सभी ने सत्य ,अहिंसा ,प्रेम ,सदाचार ,समानता और नैतिकता पर बल दिया है।हमें सभी पूजा – स्थली को पूजा भाव से देखना चाहिए और उनकी पवित्र को बनाये रखने में सहयोग देना चाइये।
साम्प्रदायिक सद्भाव का महत्व स्वस्तः स्पष्ट हो गया है और फिर आज समय बहुत तेज़ी से बदल रहा है। हमें अपने संक्रिण विचारों विचारों को त्याग देता हैं और कंधे से कन्धा मिलकर अपने देश के लिए कुछ करना है और इसे प्रगति पथ पर आगे ले जाना है। मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम और विश्वास बनाये रखना है और उन ताकतों को जड़ से मिटा देना है ,जो साम्प्रदायिकता के जहर को उगल रही है। हमें अपना प्राचीन आदर्श नहीं भूलना है जिसका सन्देश है।
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